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________________ चौंतीस स्थान दर्शन ७ लाख कोटि (१३) देवकी ४ लाख (३) अग्नि , लाख कोटि (१४) मनुष्यकी १४ लाख (४) बायु ॥ ७ लाख कोटि यह सब मिलाकर ८४ लाख योनि (५) वनस्पति , २८ लाख कोटि जानना । (६) द्वान्द्रियकी (७) त्रीन्द्रियकी ८ लाख कोटि सूचना-कुछ और स्पष्टीकरण यह है कि, (८) चतुरिन्द्रियकी १ लाख कोटि एकेन्द्रिय (स्थावरकायिक) की ५२ लाख, (९) जलचर की १२१। लाख कोदि प्रसकायिक की ३२ लाख, विकलत्रय की ६ लाख, पंचेन्द्रिय की २६ लाख, तिर्यचकी ६२ (१०) स्थलचर (पशु) की १० लाख कोटि लाख जाति (योनि) जानना ।। (११) नभचर (पक्षी) की १२ लाख कोटि (१२) छातीसे चलनेवालोंकी ५ लाख कोटि यह जो ८४ लाख योनि है यह सचित्त, (१३) देवकी २६ लाख कोटि अचित्त, सचित्ताचित्त, शीत, उष्ण, शीतोष्ण, (१४) नारककी २५ लाख कोटि संवृत, बिवृत, संवृताविवृत, इन नव भेदो के भेद प्रभेदोसे ८४ लाख हो जाते है । (१५) मनुष्यको १४ लाख कोटि (३४) कुल जोड़ १९९|| लाख कोटि १९९।। लाख कोटि कुल है । शरीर के सूचना-कुछ और स्पष्टीकरण यह है भेद के कारणभूत नोकर्मबर्गणावों के भेद को कि, त्रिर्यचकी १३४।। लाख कोटि, एकेन्द्रियकी कुल कहते है। ६७ लाख कोटि, पंचेन्द्रिय त्रिर्यचकी ४३।। यह सब निम्न प्रकार जानना- __लाख कोटि, पंचेन्द्रियकी १०६।। लाख कोटि, (१) पृथ्वी कायिककी २२ लाख कोटि विकलत्रयकी २४ लाख कोटि, जोड़ करने पर (२) जल , ७ लाख कोटि होते है।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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