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________________ ११५ १२२ १३वे । तियंच गति ? मनुप्यति १ देवगति १ कोषकवाय १ मानकडाय १ माया कषाय १ लाभकषाय १ नपुसक वेद ? स्त्री वेद १ पुरुष वद १ प्रभव्य ये भंग चारों गति, पाचों इन्द्रिय, पर्याप्त, अपर्याप्त, नित्य पर्याप्त, लब्ध्य पयांप्स, इन सब अवस्थाओं में हो होने वाले सब मेदों की व्याख्या है सो जानना। (२) सूचना-लेश्या के ६ भगों का खुलासा निम्न प्रकार जानना-जिस जीव के जितनी नेश्याओं के भंग होते हैं उतनी ही लेश्यामों में समय-समय में एक एक लेश्या का परिणमन होता रहता है। दुसरे ढंग मे ६ मंग निम्न प्रकार जानना १ का भंग-कृष्णा लेश्या १ का भंग-शुक्ल लेश्या २ का मंग-कृष्ण, नोल लेश्या २ का भग-शुक्ल, पद्म लेश्या ३ का मंग-कृष्ण, नील, कापोत लेण्या ३ का भंग-शुक्ल, पत्र, पीत लक्ष्या ४ का भंग-कृष्ण, नौल, कापोत, पीत लेश्या ४ का मंग-शुक्ल, पप, पीत, कापोत लेश्या ५ का मंग-कृष्ण, नीत, कापोत, पोत, पन तेश्या ५ का भंग-शुक्ल, पच, पीत, कापोत, मील लेश्या ६ का भंग-कृष्ण, नील, कापोत,पीस, पथ, शुक्ल नेक्ष्या ६ का भंग-शुक्ल, पथ, पीस, कापोत, मील, कृष्ण लेल्या यह वर्णन गोमटसार जोनकाह के पेक्ष्या अधिकार में लिया गया है।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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