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________________ पनगाहना-कोन. १७ और २१ से ३४ देखो। बंध प्रकृतिया-११७ माहारकतिक २, तीर्थकर प्र१ये ३ घटाकर ११७ प्र० का बन्ध जानना । उदय प्रकृतिया-६१ उदयोग्य १२२ प्र. में से सम्बग्मिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति, नरकायु १, मनुष्पायु १, देवायु १, उच्चगोत्र १, नरकद्विक २ मनुष्यद्विक २ देवद्विक २, से पाहारद्विक २, वैक्रियिकदिक २, असंप्राप्तामृपाटिका संहनन छोड़कर शेष ५ संहनन, हुंडक संस्थान छोड़कर शेष ५ संस्थान, सुभग १, प्रादेय १, यषाः कीर्ति १. प्रशस्त विहायोगति १. तीर्थंकर प्र० १, ये ११ घटाकर ६१ प्र० का उदय जानना। सत्व प्रकृतिपा–१४७ तीर्थकर प्र.१ पटाकर १४७ प्र० मा सत्व जानना । संख्यां-- अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र-सर्वलोक बानना। स्पर्शन सबलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव को अपेक्षा सादि प्रसंझी खुदभव से मसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक जानना । अन्तर-नाना जोवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा सादि असंही क्षुद्रभव से नवसी (600) सागर काल प्रमाण तक प्रसंजीबन सके। नाति (योनि)-६२ लाख योनि जानना । (एकेन्द्रिय ५२ लाख, विकलेन्द्रिय ६ लाख, असंही पंचेन्द्रिय ४ लाख, ये सब ६२ लाख जानना) कुल-१३ लाख कोटिकुल जानना। (एकेन्द्रिय ६७, विकलेन्द्रिय २४, प्रसंशी पचेन्द्रिय ४३।। ये सब १३४॥ लाख कोटिफुल जानना । को० नं०१७और २६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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