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________________ चौंतीस स्थान दर्शन १५ लक्ष्या १६ मध्य को० नं० १ देखो १७ सम्यक्त्व १८ संजी भव्य, अभव्य को० नं० १८ देखो २० उपयोग २ | संजो अनंजी २ १६ आहारक आहारक, अनाहारक १२ को० नं० १८ देखो ३ ( २७८ ) कोष्टक नं० ४० (१) तिर्वच गति में २-६-३-३ के भंग को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गत्ति में ६-३-१-३ के भंग को० नं० १८ देखो २ (१) तियंच गति में २ : २-१ के मंग को न० १७ देखो (२) मनुष्य गति में २-१-२-१ के भंग को० नं० १८ देखो ६ (१) तियंच गति में १-१-१-२-१-१-१-३ के भंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य यति में १-१-१-३-३-३-२-१-१-१-१-३ के मंग को० नं० १६ के समान जानता २ (१) नियंच गति में १-१-१-१ के भंग को० ० १७ देख (२) मनुष्य गति में १-०-१ के भंग को० नं० १८ देखो २ (१) तियंच गति में १-१ के मग को० नं० २७ देख (२) मनुष्य गति में १-१-१ के मंग को० नं० १८ देवो १२ (१) तिर्यच गति में १ मंग को० नं० १७ देखी सारे मंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १७ देख सारे भंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १० देवो सारे संग को० नं०१८ १ मंग को० नं० १७ देखी ५ दारिक काय योग में १ लेश्या को० नं० १७ देखी १ लेश्या को० नं० १८ देखो १ अवस्था को० नं० १७ देखो १ अवस्था को० नं० १८ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १७ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १८ देखी १ अवस्था को० नं० १७ देखी १ अवस्था [को० नं० १८ देखो अवस्था को० नं० १७ देखी ९ अवस्था को० नं० १८ देवो १ उपयोग को० नं० १७ देखी 8-19-57
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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