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________________ चौंतीस स्थान दर्शन २१ ध्यान २ १५ व्युपरत क्रिया निवर्तिनी शुक्ल ध्यान १ घटाकर (१५) २२ ग्रामव ૪૩ मिथ्यात्व ५ अविरत १२, (हिंसक ६+हित्य ६ ) कषाय २५, औदारिकाय योग १ ये ४३ जाननना ३ ( २७६ ) कोष्टक नं० ४० ३-४-५-६-६-५६-६ के भंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ५-६-६-७-७-२-५-६-६ के भंग को० नं० १८ के समान जानना १५ (१) तिर्यंच गति में ६-६-१०-११-०६-१० के भंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ८-६-१०-११-७-४-१-१-१-००९-१० के भंग को० नं० १८ के समान जानना ४३ (१) तियंच गति में १ ले गुण स्थान में ३६ का भंग- एकेन्द्रिय जीव में को० नं० १७ के समान जानना ३७-३८-३९-४२ के मंग- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और प्रसंजी पंचेन्द्रिय जीव मेंको० नं० १७ के २५-३६-४०-४२ के हरेक मंग में से अनुभय वचनयोग १ घटाकर ३७-३५-३६-४२ के मंग जानना ४३ का मंग-संत्री पंचेन्द्रिय जीव में को० नं० १७ के५१ के भंग में से मनोयोग ४ वचनयोग ४८ योग घटाकर ४३ का भंग जानना २४५वे गुण स्थानों में ३८-३४-२६ के मंग-को० नं० १७ के ४६-४२ -३७ के हरेक भंग में से ऊपर के योग घटाकर ३८-३४-२६ के मंग जानना ४ सारे भंग को० नं० १८ देख १ मंग को० नं० १० देखी सारे भंग को० नं० १८ देखो सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे मे जानना ५. श्रीदारिकाय योग में १ उपयोग को० नं० १० नेखो १ ध्यान को० नं० १७ देखी १ ध्यान को० नं० १८ देखो १ मंग अपने अपने स्थान के सारे मंगों में से कोई १ भंग जानना 2-19-5
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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