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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में देखो देखो दर्शन १, असंयम १. २७-२५-२६-२६ (२) तिथंच गति में | सारे भंग १ भंग संयमासंगम १. अजान , के भंग-को.नं. १७ । २४-२५-२७-२७-२२-को. नं०१७ देखो को २०१७ प्रसिद्धत्व १, पारिणा- | देखो २३-२५-२५-२४. देखो मिक भाव ३ ये ४. ३) मनुष्य गति में . सारे भंग १ भंग २२-२५ के भंग को भाष जानना ३१-२६-३०-३३-३० को नं०१५ देखो | को.नं.१८ | नं०१७ देखो २०-२५-२६-२४ के मंग (३) मनुष्य गति में | सारे मग १ मंग को००१८ देखो। ३०-२८-३०-२४-२२-को.नं. १८ देखो को. नं०१८ 6) देव गति में । सारे भंग १ भंग २५ के भंग को २५-२३-१४-२६-२७- बोन.१६ देखों को नं० ११ १६ देखो २५-२६-२९-२४-२२ देखो (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग २३-२६-२५ के भंग २६-२४-२६-२४-२८ को० नं. १६ देखो| को० नं०१६ को नं०१६ देखो | भंग को नं १९ देखो अवगाहना को न० १६ से ३४ देखो। बंध प्रतियो-से ४ गुगा मैं को.नं-१ से के समान जानना । ५वे गुण में १७ प. बंध जानना । उदय कृतियां-१ से ४ गुगा में को.नं.१ मे के समान जानना । ५वे गुण में १७ प्र. का उदय जानना । मत्स्व प्रकृतियां-१ से ४ गुण में को.नं.१ ४ के समान जानना, ५वे मुसा में १४० प्र० का सत्त्व उपनाम सम्भव की अपेक्षा जानना । १४० का सत्त्व क्षायिक मम्यक्त्व की अपेक्षा जानना। संख्या-अनल्यात जाननः । क्षेत्र-वान का प्रमुख्यानवा भाग प्रमाग जानना । स्पन-नोर का पसंख्यानां भाग ६ राजु जानना । मध्य लोक का पांचवे गुण स्थान वाला जीव मर कर १६वे स्वर्ग में जा सकता है। इस अपंक्षा से ६ गजुबानना । कास- नाना जीयों की अपेक्षा मर्वकाल । एक जीन की अपेक्षा एक समय से यन्तमहनं न किसी एक कपाय की अपेक्षा जानना । भन्तर-ना नीबों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा अन्तम इन में देशोन अर्ध पुदगल परारनेन कार तक संयमासंयम गुण स्थान धारण न कर सके । जाति (योनि)-८४ लाख योनि जानना । कुल-१६६ लात कोटिकुल जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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