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________________ ----- ov । ६० । कोष्टक नं०६४ चौंतीस स्थान दर्शन आहारक में १२ । २१ ध्यान त्युपगत किया नि. मारे भंग ।। ध्यान मारे भंग १ध्यान नाक गति-देवगति में कोनं०१५-१९| कोन-१६-' पृथस्त्र वितक विचार, ! ! १६ देतो | एकत्त्व विनर्क अविचार, ! ८६-के भंग । गुधन सिा प्रतिपा- को देखो ये ३ वटाकर (१२) ! (२) निर्यच गति में १ भंग १ध्यान नरक गनि-देवमति मारे भंग १ ध्यान ८. -१०-११-८-९-१० के को नं०१३ देखो को नं. १७ में हरे में को नं०१६-१६ | को० नं० १६. भंग-को नः १७ देखा ८-९ के भंग-को० नं० । देखो ९ देवो (3) मनुष्य गति में सारे भंग - १ च्यान | १६-१९ देखो -९-१०-११-3-1-१-१- को० नं०१८ देखो : को० नं०१८ । (२) तिर्वच गति में | भंग ज्यान १-=-६-१० के भंग-को | E-E-6 के मंग को० नंक १ दयौ । को० नं. १७ नं १८ देखो को०-०१७ नेत्रो देखो । (३) मनुष्य गति में सारे मंन १ प्यान 6-8-5-१-८. के भंग करे नं० १% देतो | को० नं० १८ मो० नं१५ देखो देखो देखो देखो २२ ग्रासद कार्मागकाय मोग १ घटाकर (५६) मारे भंग १ मंग | नारे भंग १ अंग मो० मिश्रकाय योग १. मनोयोग ४ वचन योग | कमिश्नकाय योग, ४, मी काय रोग, प्रा मिथवाय योग १ | वै० काय योन १, या. ये ३ टावर (३) काय योग १ – ११ (१)नक गति में सारे भंग १ भंग घटा.र:४५) १६-१४० के भंगकाम, १६ देखो को न०१६ (१) नरक गति में मारे ग १ भंग को न०१६ देखो दन्वी १-३३ के भंग-नो० को० न० देना । को नं०१६ (२) निर्यन गनि में __मारे भंग १ भंग 'नं०१६ के ४.३ हे. २६-३०-१६-४०-४५-५१- ० नं.१"दंगी का० नं.?" भंग में में बाकाय ४६.४२-७-५०-४५.४१ देवो योग १ पटाकर१17 के नंग को. नं. १७ के मंग जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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