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________________ चौंतीस स्थान दर्शन वेट ३४. हास्य, ३५. रति, ३६. अरति, स्पर्शाविनाम कर्म को प्रकृतियां-४ ३७. शोक, ३८. भय, ३९. जुगुप्सा, ४०, ७७ स्पर्शनाम कर्म, ७८ रसनाम कर्म, नपुसकवेद ४१. स्त्री वेद, ४२. पुरूष वेद. ७९ गंधनाम कर्म, ८० वर्णनाम कर्म (५) आयु कर्म की प्रकृतियां.४ आनुपूर्वोनाम कर्म की प्रकृतियां-४ ४३ नरकायु. ४४ तिथंचायु, ४५ मनुष्याय, ८१ नरक गत्यानुपूर्वी, ८२ तिर्यगत्यानु.४६ देवायु पूर्वी, ८३ मनुष्यगत्यानुपूर्वी, ८४ देवगत्यानुपूर्वी (6) नाम कर्म को प्रकृतियां-६७ ८५ अगुरुलघु, ८६ उपघात, ८७ परगतिनाम कर्म की प्रकृतियां-४ घात, ८८ आंतप, ८१ उद्योत, ९० उच्छ्वास, ९१ प्रशस्त विहायोगति, ९२ अप्रशस्त बिहायो४७ नरकगति, ४८ तिर्यंचगति, ४९ मनुष्यति, ५० देवगति गति, ९३ प्रत्येक, ९४ साधारण, ९५ अस, ९६ स्थावर, ९७ सुभग, ९८ दुर्भग, ९९ सुस्वर, जातिनाम कर्म को प्रकृतियां-५ १०० दुस्वर, १०१ शुभ, १०२ अशुभ, ५१ एकेन्द्रिय जाति, ५२ द्वीन्द्रिय जाति, १०३ सूक्ष्म, १०४, बादर, १०५ पर्याप्ति, ५३ त्रीन्द्रिय जाति, ५४ चतुरिन्द्रिय जाति, १०६ अपर्याप्ति, १०७ स्थिर, १०८ अस्थिर, ५५ पंचेन्द्रिय जाति १०९ आदेय, ११० अनादेय, १११ यश कीति, ११२ अयश कीति, ११३ तीर्यकर प्रकृति । शरीरनाम कर्म की प्रकृतियां-५ सूचना-नामकर्भ की ९३ प्रकृतियों में ५६ औदारिक, ५५ वैश्यिक, ५८ ।। बंध प्रकृतियां-६७ है । कारण शरीर नामकर्म आहारक, ५९ तेजस, ६० कार्माण शरीर में बंधन ५, और संघात ५, ये गभित हो जाते अंगोपांगनाम कर्म की प्रतिकृया-३ है, इस लिये ये १० कम हो गये, और स्पर्श, ६१ औदारिकाङ्गोपांग, ६२ वैक्रिय- रस, गंध, वर्ण इन्हें ४ गिने, इस लिये शेष १६ काङ्गोपांग, ६३ आहारकाङ्गोपांग, ६४ यह कम हो गये, इस प्रकार १०+१६ = २६ निर्माण नामकर्म, प्रकृतियां घट जाने से नामकर्म की बंध योग्य संस्थान नामकार्य की प्रकृतियां-६ प्रकृतियां ६७ जानना। (७) गोत्रकर्म की प्रकृतियां-२ ६५ समचतुरस्र संस्थान, ६६ न्यग्रोधपरि ११४-उच्च गोत्र और ११५, नीच गोत्र मंडल संस्थान, ६७ स्वाति संस्थान, ६८ कुजक यह २ जानना। संस्थान, ६९ वामन संस्थान, ७० टुंडक संस्थान (८) अन्तराय की प्रकृतियां-५ संहमननाम कर्म की प्रकृतियां-६ ११६. यानान्तराय, ११७. लाभान्तराय, ७१ बज्रवृषभनाराच संहनन, ७२ वज्र- ११८. भोगान्तराय, ११९. उपभोगान्तराय, नाराच संहनन, ७३ नाराच संहनन, ७४ अर्ध- १२०. वीर्यांतराय । नाराच संहनन, ७५ कीलक संहनन, ७६ असं- इस प्रकार ज्ञानावरण की ५, दर्शनाप्राप्तासृपाटिका संहनन वरणको ९, वेदनीय की २, मोहनीय की २६,
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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