SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६) चौंतीस स्थान दर्शन २७ क्षायोपशमिक (वेदक) सं० ३५ स्त्री लिंग २८ सराग चारित्र (संयम) ३६ पुरूष लिंग २९ देशसंयम (संयमासंयम) कषाय-४ ३७ अोधप (४) औदयिक भाव २१ ३८ मान कषाय गति-४ ३९ माया कषाय ३० नरक गति ४० लोभ कषाय ३१ तिर्यंच गति ३२ मनुष्य गति लेझ्या-६ ३३ देवगति अशुभ लेश्या-३ ४१ कृष्ण लेश्या लिंग (वेव)-३ ४२ नील लेश्या ३४ नपुंसक लिंग ४३ कापोत लेश्या शुभ लेश्या-३ ४४ पीत लेश्या ४५ पद्म लेश्या ४६ शुक्ल लेश्या ४७-मिथ्यावर्शन (मिध्यात्व) ४८ असंयम ४९ अज्ञान ५० असिद्धत्व (५) पारिणामिक भाव-३ ५१ जीवत्व भाव ५२ भव्यत्व भाव ५३ अभव्यत्व भाव (२४) अवगाहना जीवों के देहप्रमाण अवगाहना का वर्णन करना इस स्थान का प्रयोजन है। सो हरएक कोष्टक में देखो। (५५) बंध प्रकृतियां-१२० ८. कर्मों की उत्तर प्रकृतियां १४८ है, इनमें से-- (१) ज्ञानावरणको प्रकृतियां-५ १. मतिज्ञानाबरण, २. श्रुतज्ञानावरण, ३. अवधि ज्ञानावरण, ४. मनःपर्यय ज्ञानाबरण, ५. केवल ज्ञानावरण । (२) दर्शनावरणको प्रकृतियां-९ ६. अचलदर्शनावरण, ७. चक्षुदर्शनाबरण, ८. अबधिदर्शनावरण. ९. केवल दर्शनावरण, १०. निद्रानिद्रा, ११. प्रचलाप्रचला, १२. स्त्यानगृद्धि, १३. निद्रा, १४. प्रचला । (३) वेदनीयको प्रकृतियां-२ १५. सातावेदनीय, १६. अशातावेदनीय। (४) मोहनीय की प्रकृतियां-२६ इनमें से दर्शन मोहनीय को प्रकृति-१ १७. मिथ्या दर्शन (मिथ्यात्व का) का बंध जानना। चारित्र मोहनीय को प्रकृतियां-२५ ___ अनन्तानुबन्धीकषाय-४ १८. क्रोध, १९, मान, २०. माया, २१. लोभ । अप्रत्याख्यानाबरणकषाय-४ २२. क्रोध, २३. मान, २४. माया, २५. लोभ । प्रत्याख्यानावरणकषाय-४ २६. क्रोध, २७. मान, २८. माया, २९. लोभ । संज्वलनकषाय-४ ३०, क्रोध, ३१. मान, ३२. माया, ३३. लोभ.. नोकषाय-९ (ईषत् कषाय भी कहते है।)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy