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________________ ४ -नम्यात धनांगन जर योजन T जानना । बंप प्रकृतिया--16 क नं. ३ दवा उवय प्रकृतियां- . सरव प्रकृतियां .१४-१४० संख्या गल्प के असंख्दात - भाग प्रमाग जानना। क्षेत्र-नोक का प्रपंख्याला भाग जानना। स्पर्शन-संक का असल्यानवां भाग ६ रागुजानगा। कीनं. २६ देखो काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा अन्नमुंहत से अन्ततं और पृथक्त्व वर्ष कम कोटिपूर्व वर्ष तुक जानना । अन्तर-न.ना जीवों की अपेक्षा कोई असर नहीं। एक जीव को अपेक्षा अन्तर्मुहुर्न मे देशोन अर्ध पुयन परावर्तन काल तक देश. संममी नहीं बन सके। जलि (योनि)-१८ लास मनुष्य योनि जानना । (निर्यच ४ लाख, मनुष्य १४ नास ये १८ लाख मानना) स-५७॥ माख कोटिकूल जानना (निर्वच ४३॥ पोर मनुष्य १४ये ५७॥ लामा कोटिकूल जानता) ६४
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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