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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०२५ असंशी पंचेन्द्रिय .असंभी पंचेन्द्रिय घटाकर (४३) |११ से १८ तक के ११ मे १% तक १ले गुग में | भंग जानना सरभंगों में में ४३ का भंग को० नं०१७ को००१८ देखो | कोई १ भंग । के समान जानना कर अविरत ११. कषाय २५, प्रोमिय काययोग १, मो० काय योग , कार्मारण काय योग १, पनुभय वचन योग १ ये ४५ प्रानय बानना सूचना -यहाँ तीनों वेद जन्थ्य पर्यासक जीवों की अपेशा से माने हैं दिखो मो.का गा. ३३० ये घटाकर (४३) ले गुम्म में ११ रो १८ तक ले गुण में ११ से १% तक के भंगों में से के भंग जानना कोई १ मंग पयाप्तव जानना २रे गुग में रे गुण में १० से १७ तक ३८ का भंग को०० | १० मे १७ तक के भंगों में से १७ के समान जानना । के भंग जानना ! कोई १ मंग को.नं. १८ देखो जानना २३ भाव कुमति, कुच त जान २, दर्शन २, लब्धि ५, तिथंच गति १, कषाय ४, स्त्री नपुंसक लिंग ३, अशुभ लेश्या ३ मिथ्या दर्शन १, असंयम १, मज्ञान , मसिद्धत्व १, पारिवामिक भाव ये २६ भाव जानना सू०-लब्धि पर्याप्त जीवमनुष्य गति में भी होता है इस लिग मनुष्य गति भी जोड़नी चाहिये मरा गोमट सार कर्मकांट पन्ना ३०१ देखो। १ मंग१ मंग १ भंग १ले गुण में १७ का भंग १७ के भंगों में से .ग. में । १७ के भंग में २७ का मग को.नं. १७ को० नं० १८ दखो कोई १ भंग ! २७ का भग कोनं. १७ का भंग को कोई १ भंग समान जानना जानना | १७ के समान जानना - २०१% देखो । जानना रे गुगा में १६ के मंग में से २५ का भंग को नं. १६ का भंग को । कोई भंग नान जना नं. १८ देखो जानना चना-लब्धि अपर्याप्त मनुष्य जोड़कर यहाँ २८२६ के भंग बन जाते है।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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