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________________ प्रवगाहना-लय पर्वतक जोबों की जघन्य अवचाहना धनांगुत के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन कत जानना । प्रकृति-१७ बन्धणण १२. में से साद्विक २ य ३ घटाकर ११७ जानना 1 उदयप्रकृतियां-६० उदयोग्य १२२ में में सम्यग्मिथ्यात्व १, सम्यक् प्रकृति १, प्राहारकद्विक २, सोभंकर प्रकृति १, उच्चगोत्र १, नामकर्म २६ [(वेक्रियक अष्ठक ८, अर्थात् नरकटिक २, नरकायु १, देवतिक २, देवामु १, वैक्रियकद्विक २ ये ८ जानना) असंप्राप्तामृपाटिक संहनन छोड़कर शेष प्रथम के संहनन ५, हुडक संस्थान, छोड़कर प्रथम के संस्थान ५, प्रशस्त विहायोगति , मुभग १ प्रादेय १, यशः कीति १, एकेन्द्रिय जाति ४ ये २६ जानना) ये सब ३२ प्र. घटाकर ७ जानना, मराठी गोमट सार कर्म कांड गाथा २६६-२६७-३०१ में तिबंच गत्ति मनुष्यगति दोनों लब्धि पर्याप्तक जीव के बताई गई। सत्य पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिथंच में-उपयोग्य १२२ प्र. में से देवद्रिक २, देवायु १, नरकविक २, नरकायु १. बैंक्रियकाद्विक २, मनुष्यदिक २, मनुष्यायु १, उच्चगोत्र १, नामकर्म प्र. ३२ (आहारकद्धिक २, तीर्थकर प्र. १, सूक्ष्म १, साधारण १, स्थावर १, प्रातप १, एकेन्द्रिय जाति २, परधात १, उच्छवास १, पर्याप्त १, उद्योत १, स्वरद्विक २, विहायोगति २, यश कौति १, प्रादेय १, पहले के मंहनन ५, पहले के संस्थान ५, सुभग १,ये ३२) पुरुष वेद, स्त्री वेद १, सत्यानमृघ्यादि महानिद्रा ३, सम्पग्मिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति,ये ५१ पटाकर ७१ प्र०का उदय जानना। सत्त्व प्रकृतियो-१४७ असजी पंचेन्द्रिय तिथंच पोर लव्य पर्याप्तक तिर्यंच में तीर्थकर प्र०१ घटाकर १४७ प्र० का सत्व जानना। संख्या--प्रसंध्यान लोक प्रमाग जानना । क्षेत्र-सवलोक जानना। स्पर्शन--सर्वलोक जानना । करत-कोष्टक नम्बर १७ के समाच जानना । अन्तर--नाना जीवों को अपेक्षा अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा शुदभव ग्रहण काल से नो सौ (Eoo) सागर काल तक यदि मोक्ष नहीं हो तो इसके बाद दुबारा अशी पंचेन्द्रिय बन सकता है। जाति (योनि)-पंचेन्द्रिय तिर्यच गति में ४ लाख योनि जानना । दुल-पंचेन्द्रिय तिर्यच मे ४३ लाख कोरिकुल जानना । ३२
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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