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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक मं० ३६ अनुभय वचन योग में १० वेद को नं० १ देखो चारों गलियों में हरेक में को० न०३३ के समान भंग जानना २५ ११ कषाय को० नं० १ देखो चारों गतियों में हरेक में को नं.३३ के समान मंग जानना १ भंग अपने आपने स्थान के भंगों अपने अपने स्थान के में से कोई१ भंग मंगों में में कोई १ वेद जानना सारे भंग भंग अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना सारे मंगों में से कोई 1 को नं. १८ देखो भंग जानना सारे मंग १ज्ञान उपम अनसाग अपने अपने नारे सारे भंग जानना भंगों में से कोई १ शान जानना सारे भंग संयम अपने अपने स्थान के ! अपने प्रान स्थान के सारे भंग जानना सारं अंगों में से कोई मंयम जानना को नं० २६ देखो चारों गतियों में परेड में को नं. ३३ के समान भंग जानना १३ संयम को० नं० २६ दम्यो। चारों गतियों में हरेक में को० नं० ३३ के समान भंग जानना ४ . ४ १४ दर्शन फो.नं. २६ देखो | चारों गतियों में हरेक में को. नं। ३३ के समान भंग जानना १५ लेश्या को० नं. २ सारे भंग १ दर्शन अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना रंगों में से कोई १ दर्शन जानना श्या अपने अपने स्थान के अंगों अपने अपन म्यान के में में कोई ? मंग जानना नंगों में से कोई लेदश जानना १ मंग मा चारों गतियों में हरेक में को० नं०३३ के समान मंग जानना १६ सम्पन्न भन्य, अभव्य चारों गनियों में हरेक में को नं. ३३ के समान भंग जानना अपने अपने स्थान के | अपने कपन स्थान के मंगा में कोई १ भंग मंगों में से कोई १ चवस्था जॉनना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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