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________________ चौतीस स्थान दर्शन १ २७३ । कोष्टक नं. ३६ अनुभय वचनयोग में ६-७-5 १७ सम्यक्त्व को.नं० २६ देखो १८ संजी संज्ञी, अनंजी १ सम्यक्त्व चारों गतियों में हरेक में अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के को० नं० ३३ के समान भंग जानना सार भन जानना भंगों में में कोई सम्यक्त्व जानना अवस्था १ अवस्था चारों गतियों में हरेक में । अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्यान के १ संबी जानमा-को नं०१६ से १६ देखो मंगों में से कोई भंग । मंगों में से कोई (२) तिबंच गान में अवस्था जानना अवस्था जानना १ मयंजी-दोन्द्रिय में अमंडी पंचेन्द्रिय नक के जीव असंजी जानना को - नं०१७ देखो (5) मनुष्प गति (०) सनभय अर्थात न संजी न बमजी अवस्था जानना, देखो को. नं.१८ . ४) भागभूमि में-१ मनी जानना, का० न० १६ पाझारक आहा-क | चारों नतियों में हरेक म को नं०३६ के ममान १ प्रहारक अवस्था जानना २. उपयोग को नं० २६ देखो । चारों गतियों में हरेक में को.नं. १३ के समान भंग जानना १ पाहारक अपना माना यारे भंग पनं अपने मान के नारे भंग जानना । प्राहारक अवस्था जानना १ उपयोग । अग्ने अपने स्थान के ।कार भंगों में से कोई १ उपयोग जानना १ च्यान प्रगने अपने स्वाग के मारे भंगों में से कोई १ | ध्यान जानना २१ ध्यान म्युचरत किया निनिः १ पटाकर १५ जानना चारों गलियों में हरेक में कोन, ३३ के समान भंग जानना मारे भंग पाने अपने स्थान के गारे भंग जानना २२ भासद मिथ्यात्व ५, अविरत १२॥ (हिंसक ६ . हिंस्य ६) ४३ चारों गतियों में हरेक में को नं. ३: के समान भंग जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के मारे भेग जानना अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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