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________________ [ ५ j . दिखो ग.. क० गा० ५३३) और ऊपर जो नामकर्म के भंग आदि विवरण गो० क० गा० २१७ को० नं. ५३ : ग्राउ स्थान बतलाया गया है उनके गुणस्थान बधस्थान, मे देखो। .. .. -. -. - --- - . . ....-.--. ------- . .....- - - .--- २६. कर्मों के उबम का कथन करते हैं - प्रकृतियों का नाम । माहारकद्रिक २ । तीर्थकर प्रकृति का उदय । उपय कौनला मृणास्थान में होता? ६४ प्रमत्त गुगास्थान में ही होता है। १३ सयोग तथा १४वे प्रयोग केबली के हो होता है। सम्पमिथ्यात्व सम्यक्त्व प्रकृति का उदय । ३रे मिश्रगुण स्यान मे ही होता है। क्षयोपशमससम्याट के से ये चार गुरम होता है। में गत्यानुपूर्वी का उदय । श्ले मिथ्यात्व २रे सासादन और थे प्रसयत गुण स्थान इन तीनों में ही होता है। परन्तु कुछ विशेषता यह है कि सासादन गुणास्थान में मरने वाला जीव नरकगति को नहीं जाता। ___ इस कारण उसके नरकगत्यानृपूर्वी कम का उदय नहीं होता है और बाकी बचीं सब प्रकृतियों का उदय - मिथ्यात्वादि गुण स्थानों में अपने-अपने उदयस्थान फे अन्त समय तक (उदयव्युच्छित्ति होने तक) जानना । देखो गो० का गा० २६१-२६२)।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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