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________________ कोप्टक नं०८४ मिथ्यात्व में (सम्यक्त्व मार्गणा का पहला भेद) चौंतीस स्थान दर्शन क० स्थान सामान्य प्रालाप पर्याप्त एक जीव के नाना एक जोब के एक। समय में | समय में । नाना जीवों की अपेक्षा अपर्याप्त १जीव के नाना एक जीव के समय में एक समय में नाना जीव की क्षा १ गुण स्थान पर्याप्तवत् जानना गारों गतियों में हरेक में । परिवाब गुण गाना ७पर्याप्त अवस्था १ समास । १ समास १ समास ७ अपर्याप्त अवस्था ३लन्धि स्प६ भी होता है। १ समास १ भंग १ भंग २जीव सभास १४ को नं० २ देखो ३ पर्याप्ति को. नं०८२ देसो ४प्राण ___ को नं० २ देखो ५संजा १० कोल नं. २ देखो ६ गति ४ को० नं २ देखो ७ इन्द्रिय जाति को नं. ८२ देखो १ भंग १ गति गति जाति १ जाति १ जाति १ जाति बकाय . १ काय १ भंग १ मंग १ योग ___ को नं. ८२ देखो। ह योग १३ को. नं०८२ देखो! १. वेद ३: को० नं. २ देखो ११ कपाय २५ कोनं०५२ देखो , १ वेद सारे भंग १ भंग सारे भंग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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