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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८४ मिथ्यात्व में (सम्यक्त्व मार्गणा का पहला भेद) १२ ज्ञान १ शान सारे भंग ज्ञान १ दर्शन १ दर्शन को नं० २ देखो १३ संयम १ को नं०६२ देखो १४ दर्शन को० नं. २ देखो १५ लेश्या ६ को नं० २ देखो १६ भव्यत्व २ भव्य, प्रभव्य १ भंग ! १लेल्या १ लेश्या १ भंग १अवस्था १ भंग १ अवस्था चारों मनियों में हरेक में को० नं. १६ मे १६कोनं०१६ से । चारों गलियों में हरेक में | कोल्नं०१६ग ११ कोनं०१६ से २का भंग जानना । देखो ११ देसो २ का भंग जानना । देखो १६ देखो को० नं०१६ से १६ देखो। को.नं. १६ मे १९ देखो १७ सम्यक्त्व १ मिध्यात्व चागें गनियों में हरेक में | १मियान्य जानना पर्याप्नवा मानना को० न०५२ देखो १६ पाहारक २ फोनं०६२ देखो २० उपयोग कोनं०८२ देखो सारे भंग को० नं: १८ देखो २२ पाधव ५५ को० नं. २ देखो २३ भाव १४ कुज्ञान ३, दर्शन २, लम्धि ५, गनि ४, कमाय ४, निग ३, १ उपयोग भंग १ उपयोग १ च्यान मारे भंग । १ च्यान सारे मंग १ भंग मारे भंग १ भंग . सारे मंग१ मग बोलन. १६ देखो कोनं० १६ देखी कुप्रवधि नान घटाकर(३३)को न०१६ देसी कोनं०१६ देवा (१) भरक गति में । २५ का भंग - को० न०१६लो (१) नरक गति में २४ का मग कोनं १६ देखा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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