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________________ २४ २५ लेश्या ६, मिथ्यादर्शन १ (१) निवेच गति में असम, प्रज्ञान प्रसिद्धत्व १, परिणामिक भाव २३४ जानना २६ २७ २० re ३० ३१ बोतोस स्थान दर्शने १२ ご ६० २१-२७ के भंग को० नं० १० देखी (४) देवगति मे १ मंग सारे ग । (२) विशेष गति में २४-२५-२७-३१-२७ के भगनं०१७ को० नं० १७ देखी २४-२५-२२०२६० ० नं० १० देख (२) मनुष्य नति में को० नं०] १० दे (३) मनुष्य गति में ३०-२४ के भंग को० नं १८ देखी (४) देव में २५-२७-२४ के भंग को० नं० १६ देखो १६ से ३४ देखी को० नं० १ देखी । को० नं० १ देखो। अवगाहनाको० नं० बंघ प्रकृतियां - ११७ उदय - ११७ सब कृतियाँ १४८ को० नं० १ देखो। संख्या - चनन्नानन्त जानना । क्षेत्र सर्वलोक जानना | स्पर्शन - सर्वन्नोक जानना । नाना जीवों की अपेक्षा गर्वकाल जानना तक जानना । ( ६२५ । कोष्टक न० ८४ सारे ग को० नं० ६८ देखी सारे मंग को० नं० १२ देखी अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं न हो सके। जाति (योनि)२ लाख योनि जानना । कृष १६६१ लाख कोटिकूल जानना १. भंग को०० १८ देखी मिथ्यात्व में सम्यक्र मार्गरणा का पहला भेद) १ मग J १६ देखी २६-२६-२३ के भंग | को० नं० १६ देवी एक जीव की अपेक्षा नादिभिध्या हॉट एक बीस की अपेक्षा बहने १३२ ७ मुंह से १ भंग मारे भंग न० १७ देखी फो० नं० १७ देखी मारे भग १ भंग कन० १८ देखो को० नं० १८ देखो कार भन १ भंग को० न० ११ देखो को० नं० १६ देखो परावर्तन कोम मा कान तक मिध्यात्व का उद
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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