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________________ कोष्टक नं०४३ वैक्रियिक मिश्रकाय योग में चौतीस स्थान दर्शन २ । ३.४५ १ । २-३ के अंग-कोनं १६ देखो (२) देवगति में २-२-३-३ के भंग-को.नं. १६ देखो । १५ लेश्या को नं०१ देखो १दर्शन फो० नं०१६ हेलो | को नं. १६ देखो | को० नं१६- देखो । को नं. १६ देखो (१) नरक गति में ३ का मंग-को.नं. १६ दसो (२) देवमति में ३-३-१-१ के भंग-को न०१६ देखो १६ भव्यत्व १लेल्या को नं. १६ देखो | कोनं० १९ देखो १ भंग १ अवस्था को.नं.१६-१६ देखो . को० नं. १६-१६ देखो २ भव्य, अभव्य १७ सम्यक्रव मिव घटाकर (५) सारेभंग को नं० १६ देखो सम्यवस्व ! को नं०१६ देखो (१) नरक और देवमति में हरेक में २-१ के भंग-को० नं०१६-१६ देखो (१) नरक गति में १-२ के भंग को नं०१६ देखो (२) देवमति में १-१-३ के मंग-को० नं० १६ देखो (१) नरक और देवगति में हरेक में १ संज्ञी जानना बो० न०१६-१६ दखो १८ संजी सारे भंग १ सम्यक्त्व को नं०१६ देखो ! को नं. १६ देखो १ प्रथस्था को० नं०१६-१६ देखो । को नं. १६-१६ देखो १ मंग संजी २ ११ पाहारक पाहारक, पनाहारक (१) नरक और देवमति में हरेक में १.१के मंग-को० नं०१६-१६ देखो मारेभंग प्रवम्या को० नं०१६-१६ देखो' को०० १५-१६ देखो द २० उपयोग को० नं०१६ देखो १ भंग को न १६ देखो उपयोग . को न.१६ देखो (३) नरक गति में ४-६ के भग-को० नं०१६ देम्बो () देवगति में ४-४-६-८ के भंग-को नं०११ देखो २१ च्यान को० नं. १६ देखो १ उपयोग को नं० १६ देखो | कोन. दबो सारे भंग । ध्यान नं. १६-१६ देखो | को० नं. १६-१६ देखो (१) नरक और देवगति में हरेक में E-1 के मंग-को.नं. १६-१६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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