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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८१ भव्य में ६ ३ पति को नं०१ देखो (6) देबगति में । १समाय १ रामास (४) देव गति में । - १समाम १ समास संजीव पर्याप्त जानना को नं. १६ देखो कोनं १६ देखो। १ नंजी . अपर्याप्तको नं० १९ वो कोल्नः १६ देखो | कोनं०१६ देखो को० न०१३ देनी । १ भंग भंग भंग (१) नरक-मनुष्य-देवगति में को.नं.१६-१८-१६ को ०१-१५-(१) नरक-मनुष्य-देवगति को न०१६-१८- कोन १६-१८ हरेक में देखो | १६ देखो । में हरेक में १६ देखो १६ देखो ६का भंग | ३ का मंग को० नं० १६-१८-१९ देखो | कोनं०१६-१८-१६ देखो |42) निर्यच गति में १भग १ भंग । (२) तिर्यच गति में १ भगभग --- के. 'अंग कोनं०१७ देखो को नं. १७ देसो ६.३ के भंग बोनं०१७ देखो को००७ देखो को००७ देखो को नं. १७ देखो अपने अपने स्थान की ६-५-४ पर्याप्ति भी होनी 5 ४ प्रारम भंग १ भंग १ भंग १ भंग को० नं. १ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में ' को० ०१५. कोन०१६- (१ नरक-टेवमति में । को नं०१६-११को १६-१९ १० का भंग १६ देखो देखो हरेक में ७ का भंग | देखो देखो कोनं०१६-१६ देखी | को.नं. १६-१६ देखो (२) तिर्वच गति में मंग भं ग (२) तिर्यच गति में १०-६-८-७-६-४-१० को नं०१७ देखो को नं०१७ देखो| ७-७-६-५-४-३-७ के भंग को नं. १० दग्दो नं. १० देखो के भंग का० नं. १७ देखा। को.नं.१७ देखो | (३) मनुष्य गनि में १ भंग १ भंग (३) मनुष्य गनि में मंग १ भंग ७-२-केभंग .कोनं०१ देखो कीनं०१८ देखो १०-४-१-१० के मंग को नं. १- देखो कोनं०१८ देखो कोन १८ देखो कोन.१८ देखो ५ संज्ञा १ भग १ भंग की.नं. १ देखा (१) नरक-तिर्यंच-देवगति में । को० नं० १६-१: कोनं०१६-१७- (१) नरक-विवंच-देवगति | को.नं. १६-१७-कोनं०१.१७. हरेक में १९ देग्दो १६ देखो में हरेक में १६ देखो ! १६ देखो ४ का भंग 1४का भग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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