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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ७४ केवल दर्शन में १४ २३ भान कोन.१३ देखो (१) मनुष्च गति में १८-१३ के भंग-को नं. १८ देखो | सारे भग १ भंग काम. १८ देखी, को० नं. १८ (21 मनग्य गनि में । देखो |१४ा मंग-को नं. सारे भंग मंग को नं०१८ दखो कोनं०१८ देखो मवगाहना--1| हाय ५२५ धनुष नक जानना । बष प्रतियां-१ गुणा में १ मादा वदीप का बंध जानना और १४वे गुरण में प्रबंध जानना । को. नं. १३.१६ नम्बी। त्य प्रकृतिघां-१ वे गुरण में ४- ४ मुगप० १२ प्र. का उदय जानना । को.न. १३ और १४ देतो । सत्त्व प्रकृतियां-१३वे गुग में १४२ गुण १६, १३ जानना । को. २०१३ और १४ देखो । संख्या-८९८५०२ और ५६८ का नं० १३ और १४ दयो। चैत्र-लांच का प्रमख्यानवां भाग, लोक के असमपात भाग, सदनांक.कोनं०१२ देखा। मन-ऊपर के क्षेत्र के समान जानना। काल-सर्वकाल जानना । अन्तर- कोई गन्तर नहीं। आलि (योनि)-१५ लाम्ब बानि मनुष्य के जानना । कुत्त-१४ काख कोरियल मनुप्यों की जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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