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________________ (४३४ ) कोष्टक नं.१० मति-श्रत ज्ञान में चौतीस स्थान दर्शन wo | स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त । र जीव के नाना १जीब के एक नाना जीवों की अपेक्षा । समय में समय में | एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में नाना जीवों की अपेक्षा समय में १ गुरण स्थान सारे मुरण सारे गुण १गुरण ४ से१२ गुणाः । ४ ने १२नक के मुगण अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान, (१) नरक-तियंच-देवगति पर्याप्तवन जानना पवित् । (१) नरक गनि में के सारे गुण के मुग में रो में ४था गुगा जामना ४था गुण जानना कोई १ गुण नियंच गनि म भोग। (२) निर्वच गति में भूमि में ४घा गुणा ४था श्वां गुण २) मनुष्य गति में भोगभूमि में ४या एका गत ४ या पुरण. भोगभूमि में ३) मनुन्य गति में ४था गुगा - जानना ४से १२ गुण भोगभूमि में ४था मुग्प देवगति गति में ४था गुग्ग. 1 १ समास | गमाग नपाम २ जोव समास २ १ समास को० नं०१५ (१) नरक-मनृश्य-देवगति! को.नं. १६-१८- की नं०१६. संज्ञी पं० पर्याप्त अप. चारों गलियों में हरेक में कोनं १६ मे १ से १६ देशो में दरक में १ संज्ञो पं० पर्याप्त जानना १६ देखा । १ मंत्री गनेन्द्रिय ! को. नं.१६ से १६ प्राति (२) निन गान में मनाम १ समास मांगभुमि को प्रपत्रा को नं.१७ दग्दो को.नं. १७ १ मंजी पं. अपर्याप्न मो जानना । को००७ दवा दखा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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