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________________ ( ४२६ ) कोष्टक नं०५६ चौतीस स्थान दर्शन कुअवधि ज्ञान (विभंग ज्ञान) में - - - - -.-- काय घराकाय, चार्ग मनियों में हरेक में १ सय जानना की.नं.१६ से देखो . १ भग नं. १६ दखी को १योग न देखो । योग मनोयोग ४, बचनयोग, प्रो० काययोग, व० कायबाम १, ये (१०) जानना १० वेद को न०१ देखो चारों नियों में हरेक में का भंग वोनं १६ से १६ देखो | को० नं०१५ देखो को न १६ देखो को० नं. १७-१८ देखो को नं०१७-१८ देखो (2) नरक गान में १नमक वेद जानना को० नं० १६ देखो (१) लियंच-मनुष्यगति में-हरेक में ३-२ के भंग को० नं० १३-१५ दन्तो (1) देवगति में २-१ के भंग कोन. १६ देखो २५ (१) नरक-अनुष्य-देवगति में हरेक में कोनं० ५८ के समान जानना (२) सियंच गति में २५-२५-२१-२४-०२० के भंग को नं. १५ देखो | सारे भंग | को० न०१६ देखो को नं० १६ देखो । ११पाय २५ को.नं.१ देखी । सारे अंग १ भंग को० नं. ५ के समान । कोनं.५८ दंलो | मारे भंग । को० नं. १७ देखो कोनं-१७ देखो ! कुअवधि शान (विभग) जान १३ संयम चारों गतियों में १ कुअवधि (विभंग) जान जानना चारों गनियों में हरेक में । १ अगंयम
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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