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________________ कोप्टक नं०६५. संयमासंयम में चौतीस स्थान दर्शन / स्थान सामान्य स्थान गामान्य | पालाप पर्यात अपर्याप्त नाना जावों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा । एक जीव की अपेक्षा माना समय में एक समय में - . ६-७-६ - - - - १ गुण स्थान ५वा गुग्ण स्थान जानना (१) तिर्यन-मन प्य गति में दोक में संयमासंयम ५वा गुना जानना सूचना-यहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं हता है। २ जीवसमास १ । मंजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त (१) तिर्य च-मनस्य मनि में हरेक में १ मंगो पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना ३ पर्याप्ति १ भंग . मंग का मंग | को० नं०१७-१८ देखो , कान०१७-१८ देखो (१) निर्वच -मनुष्य गान में हरेक में ६ का भग .को न- १७-१८ देखो (१) नियंत्र-मनुष्य मति में हरेक में १३ का भंग को न०१७-१८ देखो को० न०१ देवा १ भंग | १०का भंग को० नं.१७-१८ देखो | १०का भंग को नं०१७-१८ देना को नं. १ देखो (१) नियंच-मनुप्य गति हरक में ४ का भंग को न०१७-१८ टेखो १ भंग १ भंग का भंग ४ा भंग कोनं १७-13 देखो । को० नं०१७-१८ देखो ? गनि गति तिर्यच गति, मनुष्य गति जानना ६ मति तिच गरि, मनुष्य पनि ७ इन्द्रिय जानि १ पंचेन्द्रिय जानि | (१) नियंच-मनुष्य गति में हरेक में
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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