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________________ !तोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६५ संयमासंयम में ६-७-८ मजीन्द्रिय बागना को० नं.१-१८ देखा काय ऋगकाय | (-) निर्वय-मनुप्य गनिमें हरेफ में १ चमकाय जानना कोन. 23-१८ देखा । योग वचनयोग ४, मनोयोग है। ग्रो. काययोग १. निच गति में ६ का भग (२) मनुष्य गनि में एका भंग १ भंग योग का भग कोरनं० १७ देखो को०१७ देखो । का भंग । को० न०१८ देवों को०१८ देखो (१) निर्येच गनि में १ भंग १ वेद (२) मनुष्य गनि में नारे भंग वेद को नं०१७-१८ देखो को नं.१७-१८ देखो १० बेद को नं १ देखो 73 (१) लिर्यच -मनुण ननि में हरेक ३ का भंग को० नं. १७-१८ देतो (१) तिर्यंच-गनुष्य गति में हरेक में १७ का भंग बा० नं०१७-१८सो ११ कषाय प्रत्याख्यान पाय ४, संचलन कषाय, नोकपाय र य (२) १२ जान मनिश्रत अवधि | मारे भंग भंग को.नं. १४-१८ देखो | कोनं०१७-१८ देखो (२) निर्यच-मनुष्य गति में हरेक में ३ का भंग को मं०१७-१८ देखो (१) नियंच गति में १ भंग १ जन मनुष्य गनि में मारे भंग १जान को नं०१७-१८ देखो । को नं०१३-१- देखो १३ मंयम १ संगम को.नं १७-१८ देखो | को नं०१७-१८ देखो मयमागंयम (१) निर्यच मनुष्य गति में हरेक में १संयमामयम जानना कोनं-१- दत्रा १४ दर्शन अन दर्शन. चक्षु दर्शन | अवधि दर्शन में (३) १ मंग १ दर्शन को० नं०१७-१८ देखो को नं०१७-१८ देखो । (१) नियंत्र-मनुस्य गति में हरेक में ३ का भंग का० न०१७-१८ मा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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