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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६५ संयमासंयम में १ भंग १५ लेया शुभ लेश्या जानना । कोन. १७-१८ दशी को नं. १७-१८ देखो। (१) निर्मच-मनुष्य गति में हरेक में का भंग को नं-१७-१ देखो १६ हत्यत्व को नं. १७-१८ देवी का नं०१७-१- दन्ना (२) तिर्य च-मनुप्य गनि में हरंक में १भव्य जानना को० नं०१७-१८ देखो १७ सम्यक्त उपशम-क्षायिक-क्षयोपशाम १ भंग की नं० १७ देता सम्यक्त्व का नं०१७ दम्खा (१) तियं च गनि में २का भंग को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य ननि में ? का भंग को नं०१८ देखो सारे भंग कांनं. १८ देखो १मध्यवत्व .मो.नं. १८ देखो १८ संजी संजो । को नं०१७-१८ देखा को नं.१७-१८ देखो (१) तिबंच-मनुष्य गति में हरेक में मी जानना कोनं०१३-१८ देवी १६ पाहात ग्राहाक को नं०१३-१- देखो । को न०१७-१८ देखा (१) नियंच-मनाय गगि में हंग्क में १ ग्राहारक जानना । को नं. १५-१६ देसको २० उपयोग जानोपान ३ दशंगयोग, में (E) कोन०१३-१८खा की नं.१७-१८ दवा (१) नियंच-मनुप्य पनि में हरेक में वा भग की नं०१७-१:देखा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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