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________________ अवगाहना--कोनं०१६ से ३४ देखा। बंब प्रकृतियां-2 से ४ मुरण में क्रम से ११७-१०१-०४-७७ प्र० का बंध जानना । को००१ में ४ देखो। उदय प्रकृतियां- ११७-१११-१३०-१०४ प्र० का उदय जानना । को.नं. १ ४ देखो। सत्व प्रकृतियां-- , १४-१४५-१४७-१४० और १४१० सत्ता जानना । को० नं. १ से ४ देखो। संख्या--अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र -सर्व लोक जानना। मन-मर्वलोक जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव को अपेक्षा मादि असंचमी अन्त मुहूर्त से देशोन अचं पुद्गल परावर्तन काल तक जानना 1 प्रकर-नाना जोवों को अपना कोई अन्तर नहीं। एक जी। की पंग अन्तमुहर्त से अन्तर्मुहूतं कम एक कोटिपूर्व तक गंयमी बना है। असंयम प्रप्न न सके। जति (योनि)-८४ लाख योनि जानना। कुन- १९६ लाख कोटिकूल जानना। १४
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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