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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५२ अप्रत्याख्यान ४ कषायों में १ .ग ३ प प्ति १ मंग १भंग १ भंग को० नं. १ देखो । (१) नरक-देवचति में हरेक में | को० नं० १६-१६ कोन०१६-१७ (१) नरक-देवगति में को मं०१६-१६ को०नं० १६-१६ ६का मंग देसो देखो हरेक में ३ का भंग | देखो को० २०१६-१६ देसो को.नं. १६-१९ देखो। (२) तिर्यच गति में | १ मंग १मंग (२) निर्यच पति में १ भंग । १ मंग ६-५-८-६ के भंग को० नं. १७ देखो को नं०१७ देसो ३-३ के भंग कोनं. १७ देखो कोनं०१७ देशो को.नं०१७ देखो को.नं. १७ देखो मनुष्य गति में मंग भं ग । (३) मनुष्य गति में १ भंग ! १ मंग। (३) ६-६ के मंग को नं. १८ देखो कोनं.१८ देखो| ३-३ के भंग को० नं० १८ देखो कोन. १८ देसो को मं०१८ देखो | को. नं० १८ देखो ४प्राण १ भंग भंग । १ भंग १ भंग को.नं. १ देखो I Oनरह-देव गति में हरेक में को.नं. १६-१६ कोनं.१६-१६ (8) नरक-देवगति में |को.नं. १६-१६ को.नं. १६-१६ १० का मंग देगो देखो हरेक ७ का भंग । देखो देखो को नं०१६-१९ देखो । को नं०१५-१६ देखो | (२) तिर्यच गति में | १ भंग १ मंग (२) निर्यन गति में १ भंग १ मंग १०-8-4-७-६-४-१. की.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो ७-७-६-५-४-३- के भंग को००१७ देखो कोन०१७ देखो के मंग को नं. १७ देखो को. नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में ! १ भंग ! भंग (३) मनुष्य गति में . मंग १ भंग ७.७के भंग को .नं. १८ देखो को नं.१८देखो १०-१० के भंग को नं०१८ देखो को.नं०१८ देखो को नं०१- देखो। को नं १८ देखो १० संज्ञा को.नं०१ देखो । भंग १ भंग . १ भंग । १ भंग पारों गतियों में हरेक में कोनं०१६ से १६ को० न०१६ से चारों गनिणे में हरेक में को२०१६ से १९ कोल्नं. १६ से ४ का भंग I देलो १९देखो ४का भंग । देखो १६ देखो को.नं.१६ से १६ देखो। को नं०१६से १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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