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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४९ नपुसक वेद में काय को.नं. १ देखो (१) नरक-मनुष्य गति में १सकाय जानना को० नं०१६-१८ देसो १काय १ काय अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (1) नरक-मनुष्य गति में को.नं.१६-१८ को० नं. १६'काय जानना । के १ काय | सकाय जानना देखो १८ देखो को.नं.१६-१८ को.नं.१६- | को० नं०१६-१८ देखो १ योग १३ प्रा०मित्रकाय योग है, प्राहारककाय योग, ये २ घटाकर (१३) (२) तिर्यंच गति में 1. १ काय | १ काय |(२) तियंच गति में ६-१के भंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देसो-४का भग | को० नं० १७ देखो को नं०१७ देखो को. नं०१७ देखो को. नं०१७देखो १ मंग । १ योग मंग ।योम प्रो० मिस्रकाय योग १, | अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान पौ० मित्रकाय योग १, पर्याप्तवत् । पर्याप्तवत् वै. मिश्रकाय योग १, । के कोई १ भंग के भंगों में से 20 मिप्रकाय योग १, मंग जानना योगदानना कार्मासाकाय योग १ जानना ! कोई १ योग कारिणकाय योग १ ये ३ घटाकर (१०) ये ३ जानना (१) नरकगति में १ भंग | १योग (१) नरक गति में १ भंग योग ९ का मंग को० नं०१६ का भंग में से कोई १-२ के भंग १-२ के मंगों में ] १-२ के अंगों के समान १ योग को.नं० १६ देखो | कोई १ मंगसे से कोई १ योग को नं०१६ को.नं. १६ (२) नियंच गति में १ भंग योग (२) तिर्यच गति में | १ मंग योग ९-२-१ के भंग को.नं. ६-२-१ के भंगों में -२-१ के .-२ के मंग | को नं०१७ देवीको नं. १७ देखो १७ देखो मे कोई 1 भंग भंगों में से कोई को.नं. १७ देखो जानना १योग (३) मनुष्य गति में सारे पंग योग (३) मनुष्य गति में सारे मंग १ योग ह-६ के भंग को० नं. अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान १-२ के मंग अपने अपने स्थान अपने अपने १८ देखो के सारे मंग के सारे मंगो को.नं.१% देखो के सारे भंग स्थान के सारे जानना में से कोई १ जानना भंपों में से कोई पोग को.नं.१८ १ योग जाना नपूसक वेद जानना | तीनों गतियों में हरेक में नपुंसक वेद जानना तीनों गतिययों में हरेक में 1१भसक वंद जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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