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________________ P ३ पर्या (१) आर्या (२) शरीर (३) इि (४) ध्यानोच्छवास प० (५) भाषा पर्याप्त (६) मन पर्याप्त ये ६ पर्याति जानना ५ संज्ञा " आहार, भय, तीस स्थान दर्शन ૨ te ४ प्रागा (१) प्रायु प्रा (२) कायल प्राण (३) इन्द्रिय प्रा ५. (स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, श्रोन्द्रिय प्राण ने ५) (४) (५) वज्रमवन प्राण, (६) मनोवल प्रागा, ये १० प्राय जानना ६-५-४-६ के मंग (१) नव-मनुष्य-गति में हरेक में ६ का भंग को० नं ७ १६-१८ - १६ देवो (२) निर्मक गति में ६-२-४-६ के भंग को० नं० १ ( २६ ) कोष्टक ०१ (२) निर्यच गति में i १ मंग १ भंग को० नं० १६-१०-कीनं १६१ १६ देखी १६ देखो ? भंग को० नं० १७ देखी ? भंग कॉ० नं० १३ देखो १० १ मंग १ भंग १०-६-८-६-६-४-१० क० नं० १६-१०- कोनं १६-१८ के भंग १६ देखी १६ देखी १) नरक- मनुष्य- देवगति में हरेक में १० का भंग कोनं० १५-१६ देखो ९ मंग १ भंग १०-२-६-७-६-४- १० को० नं० १७ देखो ! को० नं० १७ के भंग को० नं० १७ देखो: देखो | १ भंग १ भंग (१) चारों गतियों में हरेक में को० नं० १६ से १२ को० नं० १६ से देखो १६ देखी T 1 | उपयोग रूप ३ पय सवन सूचना-पत्र २४ पर देखो ३-३ के भंग 1 मन भाषा-वा (२) (४) चारों गतियों में हरेक में ३का संग प्राहार, शरीर, पर्यात ३ का भंग जानना ००१०१२ दे 6. मनोल वचनबल, वागच्छवास ये ३ घटक (७) ७-७-६-५-४० के ग (१) नरक मनुष्यदेव में हरेक म २. ७ का भंग पो० नं० १६ १५-१६ मिध्यान्य गुरण स्थान में (१) चारों गतियों में हरेक में ७ १ मंग ० नं० १६ से १६ देखी 2. भंग (२) दिर्यच गति में १ भंग 19-७-६.५-४-३७ के भंग को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखी ८ १ भंग को० नं० १६ से १९ देखो १ मंग को० नं० १६ से १६ देख को० नं०१६-१०- कोनं० १६-१८१६ देखी १६ देसो १ भंग १ मंग को० नं० १७ देखी १ मंग को० नं० १६ से १६ देखी
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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