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________________ चौंतीस स्थान दर्शन । २७ ) कोष्टक नं०१ मिय्यान्व गुण स्थान में - - मैथुन, परिग्रह ४ का भंग को.नं. १६ | ४ का मग को गजानना से १९ देखो से देखो पति गति गनिमति नरक, नियंत्र- मनुष्य | चारों गति जानना नारों में से कोई 1 में मे कोई । चान गति जानना चारी में कोई चारों में से कोई देवगति ४ जानना पति जानना । यति पति बानना । गति जानना ७ इन्द्रिय जाति ५ । १बात जाने , य, व-: १बानि । जाति (१) एकेद्रिय जानि (१) नाक-माप्य-देवमति में को•०१६-१८-कोनं०१६-१८- गति में हरेक में को.नं.१६-१८-कोनं १६-10(२) हीन्द्रिय ज नि । १६खो १६ देखो १ पवेन्द्रिय जानि जानना १६ देखो १६ देखो (३) वीन्द्रिय व नि । पचन्द्रिय जाति जानना | को.नं.16-१५-१६ (१रिद्रय जानि को नं. १६-१८-१६ देखों देखो (५) पचेन्द्रिय जाति नियंच गति में जाति । जाति (3) तिर्यच गति में | जाति जाति ५-१के भंग कोन. १७को नं. १ देखो को.नं. १ ५-१के भंगको न०१७ देखो | को सं० १७ देखो दहो । को नं. १७ देखो | देखो काय पृथ्वी, पप (जल), 1) नरक, मनुष्य, देवगति में को.नं. १६-१८-कान: 11-16- (१) नरक, मनप्य, देव-को.नं.१६-१८-कोन०१६-१.. तेज (अन्नि), वायु, हरेक में १६ देखी M E १६ देखो मा सात महल म । १६देता १६देखो वनस्पनि, घसकाय, १जनकाय जानना | १ सकाय जानना ये काय जानना कोनं १६-16-देखो कोनं०१६-१५-१६ देखो (२) नियर गति में | काय १काव । (२) नियंच गनि में काय काय - के भंग को नं० को.नं. १७ देलो कोनं०१७ देलों -के मंगको नं०१७ देतो कोनं०१७ देखो १७ देगा। को००७ देखो एवोन 10 रयोग २ माहारक मिथकाययोम श्री. मित्र कायबोग, | श्री. मिथ कायांग, मर० काययोम, ये ।। 46 मिथ बाबयोप, यावे. मिश्रकाययोग घटाकर (११) कामणि काययोम, भौर कामारग कापयोग ये ३ पटाकर (१०) पोग जानना ९-२-१-१ के अंग १-२ ने भग (१) नरक-मनुष्य-देवगति में को.नं. १६-१८-कोनं०१६-१८- (१) चारों गलियों में को .१६ से को0नं०१६ से हरेक में १९ देस्रो १६ देखो । हरेक में १६ देखो १६ देखो । , भंग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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