SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौतोम स्थान दर्शन कोष्टक नं० ११ उपशांत कषाय गुण स्थान पर्याप्त अपर्यात म्थान | पालाप सानाम्य नाना जीवों की अपेक्षा गगक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में ६-७-८ गुण स्थान २जीब मम् उपमांत कगाय (मोह) गुराग स्थान ! संजो पन्द्रिय पर्याप्त प्रबम्या मंग !: का भंग को नं. १ के मृजिद १० १. का भग को नं०१८ के मुजिब जानना ० अपगत पंजा जानना के भंग भंग १० का भंग भंग का भग १ भंग १० या भंग मूचना-इस उपशांत कयाय (मोह) गुरण में अपर्याप्त अवस्था न होती है। . पर्याप्ति को नं०१ देखो ४ प्राण कोन देखो ५ मंशा गति . इन्द्रिय जाति १ मनुप्य गति जानना पंनेन्द्रिय जानि जानना प्रमकाय जानना १ यंग को नं. ५ देखो भंग ६ का मंग पाग के यांन मे में कोई योग जानना है का भंग को दं०१८ के मुजिब • अपगत वेद जागना ० प्रकषाय जानना ११ कषाय १२ ज्ञान को नं. देखो का भग को नं. : मांजन मध्यान मवम जानना , भग का मम के भंग में में कोई जान जानना ! भंग १३ संयम १४ दान को नं.: देदो १५लेश्या 3 का भंन को नंत १८ के मुजिब १शुद्ध नया जानना को भंग न ३ के भंगों में से कोई। १दन जानना १६ भव्यत मन्य जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy