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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५२ अप्रत्याख्यान ४ कषायों में ४४-४० के हरेक भंग में | '३३ के हरेक भंग में में । से अप्रत्याख्यान कषाय | पर्याप्तवत् अप्रत्याख्यान । जिसका विचार करो। कषाय ३ घटाकर ३६-३, उसको छोड़कर शेष ३ के मंग जानना । वाम घटाकर ४-४१ .(२) नियंच गति में । सारे भंग १ भंग ३७ के मंग जानना ' ३४-३५-३६-७-४०.४१-को० न०१७ देखो को नं. १७ देखो (२) तिर्यंच गति में | सारे भंग भ ग २६-३०-३१-३०-३५-३६३३-३५-३६-३७-४०-४- को० नं० १७ देखो को नं०१७ देखो।०-३५-३० के भंग को०नं० ४३-18-४७-४२-३८ के भंग १ ३७-३८-३६-४०-४३को० नं०१७ के ३६-२८ ४४-३२-३३-३४-२५३८३९-४०-४३-११-४६-४२-| ५०-४५-४१ के हरेक भंग म : भंग में से पर्याप्तवतु अप्रसे ऊपर के समान अप्रत्या | त्यारुवान कपाय ३ घटा-! स्थान कषाय ३ चटाकर कर५४-३५-३६-३७-४०३३-३५-३६-३७-४०-४-- ४१-२९-०-३१-३२-३५४३-२६-७.४२-३८ के भंग । २६-४०-३५-३०के भन जानना जानना (३) मनाम मनि - सारे भंग भंग । (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग 12-28-0.. कान १८ देखो को.नं.१८ देखो ४१-३६०-४-३५-३० को.नं. १८ देखो को.नं०१८ देखो के मंग को० नं. १ के ! के मंग को० नं०१८ के । ५१-४६-४२-५०-१५-११ . ४४.३१-३-४३-36-0I के हरेक भंग में से ऊपर के के हरेक पंग में में पर्याप्टनमान अप्रत्याख्यान पाय : । बतु अप्रत्याभ्यान कवाय । ३ वाकर ४०-१३-३६-! । ३ घटाकर ४१-३६-३०४७-४२-३८ के भंग जानना ४०-३५-३० केभंग (४) देवगति में - मारे भंग १ भंग जानना ४७-४२-३८-४६-४१-३७-को. नं. १६ देखो कोनं० १६ देखो ।४देव गति में । मा भंग भंग ३.के भंग को नं. १६ ४.-३५३५-३६-३४-३०-को.नं. १६ देखो कोनं १६ देखो के ५७.४५-४१-४६-४४. ३.के मंग को नं. १३|| ४०-४० के मंग में से ऊपर ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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