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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ सासादन में (सम्यक्त्व मार्गणा का दूसरा भेद) 166) देवगति में मारे भग १ भंग को न०१६ देखा काम०१६ देखो की नं०१६ यंत्रो | सारं भंग २३ भाव ३० सारे भंग १ भंग । १ भंग वो० नं२ नो । (१) नरक गनि मे कोनं० १२ देखो को.नं.१६ देखा कुअवधि जान घटाकर . २४ का भंग (३१). कोनं१६ देखो (२) तिर्यच गनि में को० नं०१७ देखो को नं०१७ देखो (२) नियंच गति में सारं भंग भंग - २५२५-२५ ९-२५ के अंग कोनं० १७ दम्रो कोन० १७ देखी के मंग को००१७ देखो 'को नं०१७ देखो (३) मनुप्म गति में | सारे मंग भं ग (३) पन्द्रय गति में सारे भंग १ भंग २६-२५ के मंग को नं. १- देखो कोन०१८ देखो, २८-२२ के भंग कार नं०१८ देखा कोनं०१८ देखो को नं०१८ देखो बो० म०१८ देखो। (४) देवमति में सारे मंग र मंग (४) देवर नि में मारे भंग १ भंग २३-२५-२२ के मंगको० नं०१६ देखो को०२०१६ देश। २४-२४-२१ के भंग को००१८ देवो को२०१३ देखो कारनं. १६ देम्बा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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