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________________ । ३४२ । कोष्टक नं. ४६ चौतीस स्थान दर्शन नपुंसक वेद में मंग में से स्त्री-पुरुष वेद के हरेक मंग में से स्त्रीये २ घटाकर ३-४६ पुरुष वेद २ घटाकर ४१४.४०-३५ के मंग जानना ४. के मंग जानना (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ भंग । ३६ का मंग-को० नं. ४-४-४०-३५-२० केको .नं.१८ देखो को नं० १८१७ के ३८ के भंग में भंग-को० नं. १८ के देखो से स्त्री-पुरुष वेद घटाकर ५१-४६-४२-३७-२२ के ३६ का मंग जानना हरेक भंग में से स्त्री-पुरुष ३७ का भंग-को० नं० वेद २ घटाकर ४९-४४ १७ के ३९ के भंग में ४०-३५-२० के मंग से स्त्री-पुरुष वेद २ । जानना घटाकर ३७ का भंग २०-१४ के भंग को०१५ के चानना २२-१६ के हरेक भंग में (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग से स्त्री-पुरुष वेद ये २ ४२-३७ के भंग-को० को नं०१८ देखो, को० नं.१% घटाकर २०-१४ के भंग नं०१५ के १४-३६ के देखो जानना भगों में से स्त्री-पुरुष वेद ये २ घटाकर ४२-३७ के। भंग जानना २३ भाव ४३ सारे भंग १ मंग सारे भंग १ मंग को० नं.४८ के ४२ के । (१) नरक गति में को मं०१६ देखो 1 को.नं. १६ कायिक सम्यक्त्व १, अपने अपने स्थान | अपने अपने भावों में से स्त्री वेद । २६२४-२५-२८-२७ के देखो कुजान २, दर्शन ३, सारे भंग स्थान के सारे घटाकर नपुंसक बेर मंग को.नं.१६ के शान ३, वैदकस. १, | जानना मंगों में से जोड़कर ४२ जानना समान जन्धि ५, नरक गति कोई भंग (२) तिर्यच गति में सारे मंग । १ भंग तिथंच गति-मनुष्य गति जानना २४-२५ के भंग को नं. को.नं.१० देखो को० नं०१७ | ये ३, कपाय ४, नए सक १७के समान आनना । देखो | लिग १. पशुभ लेश्या ३, २५-२६-२७-२८-३०-२७ | मिथ्यादर्शन १, पसंयम के भंग को नं०१७ के १, प्रशान १, अमिद्धत्व २७-३१-२६-३०-३२-२६ ,पारियाभिक माद३, ये ३ जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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