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________________ कोष्टक २०६४ आहारक में चौतीस स्थान दर्शन * स्थान मामान्य मानाप पर्याप्त जीव के नाना समय में । एक जीव के नाना एक जीव के एक | समय में समय में | नाना जोवों की अपेक्षा एक जीव के एक समय में नाना जीव की झा १ गुग्म स्थान १३ मारे मुगग स्थान. १ गुणः । सारे भंग १ गुण १ १३ तक के मुरग ।।१) नरक गति में १ से अपने अपने-के अपने गले का नामक गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (२) तिर्यच गनि में में। . सारं गुण स्थान के सारे गुण में' मेघ सारे गुण जानना के सारे गुग्गल में भोग भूमि में १में जानना से कोई १ गंगा (२) निर्वच गति में मे कोई १ गुण (3) मनुष्य गन में १ मे १३ | जानना जानना भोग भूमि में १ मे ४ । भोग भूमि में (४) देवगति में में । (३) मनुष्य गनि में । भोग भूमि में |() देवगति में । १-२-४ २जीव समास १४ ० पर्याप्त अवस्था १ समास १ ममाम । अपर्याप्त अवस्था , सपास पसमाम को १ खो (१)मरक-मनुष्य-देवमति में कोनं०१६-१-- कोन०१६-१८-(१) नरक-मनुष्य-देवगति को.न. १६-१८-कोनं० १६-१८हरेक में .१६ देखो देखो ! में हरेक में १६ देखी १६ देखो १ यजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त | १संनी पं० अपर्याप्त जानना जाना कारन०१६-१८-१६ देखो कोनं० १६-१-१६ । (२) तिर्य गति में १ ममाम १ ममाग देगो 9..- के भंग को० म०१७ दरो कोन०१५ देसो (२.तिर्यच गान में समाय ? समास को नं देलो । ७-६-१ के भंग को नं दलो कोनं०१७ देख | को० न० १७ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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