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________________ ( ३६६ । कोष्टक नं०५२ चौतीस स्थान दर्शन अप्रत्याख्यान ४ कषायों में १ भंग १८ संशी १ अवस्था | भंग १अवस्था संजी, मसंजी] (1) नरक, मनुण्य, देव गति में को० नं०१६-१०-कोनं. १६-१८ (१) नरक-मनुष्य-देव को० नं०१६-१८-कोनं०१६-१८हरेक में - १६ देखो' १९ देखो गति हरेक में । १३ देखी १९ देखो १ संज्ञी आनना | ।१ संझी जानना को. नं०१६-१८-१९ देखो मंग । १अवस्या को०नं०१६-१८-१९ देखो (२) तिथंच गति में को० नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो (२) तियंच गति में १मंग । १ अवस्था १-१-१-१ के मंग १-१-१-१-१-१ के भंग को नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो को. नं० १७ देखो ' को नं. १७ देखो १६ माहारक ' २ पाहारक, अनाहारक नरत-देवगति में हरेक में को० नं०१६ प्रौर को नं०१६और नरक-देव गतियों में को० नं०१६और कोनं०१६पौर १ प्राहारक जानना १६ देखो । १६ देखा । हरेक में १६ देखो १६ देखो कोनं० १६ और १९ देखो ।१-१ के भंग तिर्यच पोर मनूष्य गति में को.नं. १५-12 कोल्नं.१३.१८ को नं. १६और १९ हरेक में देखो देखो देखो १-के मंग (निर्यच पोर मनुष्य गतियो, १ भंग १ अवस्था को नं. ७-१८ देखो में हरेक में को.नं. १७-१८ कोन१७-१८ [१-१-.-१ के भंग देखो । देखो । को० नं० १७-१८ देखो २० उपयोग भंग १ उपयोग १मंग १ उपयोग को नं०१६ देखो नरक गनि में को० नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो प्रवधि ज्ञान घटाकर को नं०१६ सो कोनं०१६ देखो ५-६- के भंग को.नं. ९ देखो 1 ) नरक गति में (२) नियंच पति में मंगा उपयोग |४-६ के मा ३-४-५-६-६-५-६-६ के मंगको.नं. १७देखो कोनं-१७ देखो को० नं.१६ देखो १ मंग १ उपयोग । को.नं. १७ देखो । (२) तियर गति में को.नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ उपयोग | ३-४-४-३-४-४-४-६ १-६-६-५-६-६ भंग की.नं. १८ देखोकोनं०१८ दलो के मंग को० नं. १८ देखो को.नं.१ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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