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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७१ प्रचक्ष दर्शन में मंग में से ऊपर के समान के ६ के भंग में से गए २ दर्शन घटाकर ४-४ पर्याप्तवत मोष २ दर्शन ५-५ के भंग जानना घटाकर ४ का भंग ४ का भंग-को० न०१८ जानना के भोगभूमि के ५ के भग (1) देवगति में १ भग १ उपयोग में स ऊपर के समान शेष ३-३ के मंग-को० नं. को० नं.१६ देखी | को० नं०१६ १ दर्शन घटाकर ४ का १६ के ४.४ के हरेक देखो भंग जानना भंग में से पर्याप्तवत् शेष ४-४ के मंग-को० नं १ दर्शन घटाकर ३-३ १८ के भोगभूमि के ६-६ के भग जानना के हरेक मंग मस ऊपर ४.४ के भंग-को.नं. के समान शेष २ दर्शन १६ के ६-६ के हरेक भग घटाकर ४-४ के भंग | में मे पर्याप्तवत् शेष २ जानना दर्शन घटाकर ४-४ के (४) देवगति में भंग १ उपयोग | भंग जानना ४-५ + मंग-को० नंको0नं0१८ देवा को नं० १९ १६५-६ के हरेक भंग । में में ऊपर के समान शेष १ दर्शन घटाकर ४.५ के भंग जानना ४ का मंग-को० नं०१६ के के हरेक भंग में से ऊपर के समान शेष २ दर्शन घटाकर ४ का भग जानना २१ प्यान सारे अंग सारे भंग १ध्यान पुश्मक्रिया प्रति- (१) नरक-देवगति में हरेक में | का नं०१६-१ का नं.१६- मार्तघ्यान 'रोदध्यान पानी १, ब्युपरन ८-1-10 के भंग-को० नं० देखो क्रिया निवतिनी १ | १६-१६ देखो। धर्मध्यान ४ ये (१२) देखा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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