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प्रवमाहना - लडन्य पर्याप्तक जीन की जघन्य अवगाहना घनांगुल के प्रसंख्यातचे भाग प्रमाण जानना मौर उस्कृष्ट अवगाहना (उपबन्ध महीं
हो सकी। मंत्र प्रकृतिश-१०-१०७ को० नं. २१ के समान जानना।
अय प्रकृतियां को.न. १. में गे सागर भटाकर १० का उदय जानना। सत्य प्रकृति- ४५--१४३ कोर नं. २१ के समान जानना । संस्पा-घसंख्यात लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र-सर्वलोक जानना स्पर्शन-सर्वलोक मानना । कल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल बानना, एक जीव की मोक्षा शुद्रभय से असंख्यात लोक प्रमाण जानना। अन्तर--नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से पसंख्य पुद्गल (परावर्तनकान में यदि मीम नहीं जा
हो तो दुबारा पृथ्वी काय जीव बनना पड़ता है)। जाति योनि)-७ लाख पृथ्वीकाय योनि जानना। फुल-२२ लाख कोटिफुल जानना।
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