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________________ १ चौतीस स्थान दर्शन १० संज्ञी १६] आहारक ? संजी प्राहारक अनाहारक (वेदक सभ्यत्व ये का भंग ज नना (६) १ले स्वयं ने नवग्रं वैसक गक के दबो में ४चे गुगा० मे ३ का भग उपशम क्षायिक अयोपशम सम्यगत्व ये जनना (४) नव अनुदिश और पंचानुत्तर विमान के देवों में गुरण में २. क्षयोपशम सम्यक्त्व ये २ भंग जीवना सूचना--- भवनत्रिक देवों में पर्याप्त अवस्था में भी क्षायिक सम्यक्त्व नहीं हो सकता है | १ से ४ गुरप 2 १ मंत्रो जानना में ? १ से ४ गु० में १ आहारक जानता ३ का भंग २ का भंग मंत्री १ आहारक ( १६२ ) कोष्टक नं० १९ ५ के भंग में से कोई 5 सम्यनत्व जानना १२ के भगों में से कोर्ट १ सम्पत्व जानना संजी आहारक सामिक योषयाम सम्यक्त्व ये३ का मंग सूचना - यह ३ का मंग भवनत्रिक देवों में नहीं होना (देखो गो० । क० गा० ३०५ ) ? १२३४ गुम्प० १ संज्ञी जानना में १ २२ ४ये में गुण ० १ अनाहारक विग्रह गति में जानना १ आहारक आहारक पर्याप्त के मिश्र अवस्था में जानना संज्ञा देवगति दोनों अवस्था १ अनाहारक १ श्राहारक ८ संजी अवस्था १ अनाहारक १ आहारक
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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