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________________ कोष्टक नं० २२ चौतास स्थान दर्शन . साता नामान्य द्वीन्द्रिय क० स्थान हाताप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नाना एक जोर के एक ! ममय में | समय में | नाना जीवों की अपेक्षा नाना जीव की अपेक्षा १जीव के नाना एक जीव के समय में एक समय में १ गृगा म्यान मिथ्यात्व, मान दन | मिथ्यात्व गुण. - दोनों गुण मिध्यान्व, मासादन . मिथ्यात्व, सासादन १ गुण . दो में से । कोई एक मुरण . २ जीवममारा डोन्द्रिय पर्याप्त प्रप० ले गुगा में हीन्द्रिय पर्याप्त १ले रे गुण में तीद्रिय अपर्याप्त ३ गर्याप्ति ५ मनपर्याप्ति घटाकर (५) १ भंग ५का भंग का भंग १ भंग ३ का भंग १ मंग का भंग ले गुण में ५ का भंग को० नं०१७ के समान मन-भाषा-श्वासो. म ३ घटाकर (३) १ले २२ गुण में ३ का मंग आहार, पारीर, इन्द्रिय पर्याप्ति ये तीन भंग जानना लब्धि रूप ५ पर्याप्ति १ मंगभंग ६ का भंग का भंग १ भंग ४ का भंग | १ भंग ४ का भंग ४प्राण प्राय, कायबल, सार्शनन्द्रिय, रमनेन्द्रिय श्वासोच्छवास, वचन, बलप्राण, ये ६ जानना १ले गुग में । ६ का भंग को० नं०१७ । के समान वचनबल, श्वासोच्छवास ये २ घटाकर (४) १ले २रे गुग में ४ का भंग कोने १७ के समान ५ संत्री । १ भंग । १ अंग
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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