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________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४ असंयत (अविरत) गुन स्थान निर्यच गति में .-३ के भं ग मम्यक्त्व [ (२) तिर्वच गति में- १ भंग १ सम्यक्त्व अंग को नं०१७देखा को नं. देखो को नं. १७ देखा भौग भूमि की अपेक्षा | को नं.१७ को नं.१७ देखो (1) मनुष्य गति में:- के । मार भम सम्यक्त्व जानना देखो | भंग को नं- दम्बा को नं. १८ देखो को नं० १८ देखो ) मनुष्य गनि में २-२ सारे भंग १ सम्यक्च १४दंवगति में २-3-के | मारे भय ,सम्यक्त्व | के भंग को नं०% को नं०१८ देबो को नं. १८ देशों मंग का नं० १६ दबा को नं०१६ देखो को नं० १९ देखो देखो (४) देव गति में-३ का यारे भंग गम्यक्त 'भंग को नं. ११ को न देनोको नं० १९ देखो १८ मंज्ञा बारों पतियों में हरेक में को नं०१में | कोन. चागेंगतियों में हरेक में। को नं. १६ मे | को नं०१६ में १ संजी जानना का १६ मे १६देखा१संजो जानन १६ देयो । १६ देखो नं. १६ मे १६ देखो को नं. १६ से १६ देखा तो न.१७ दलो परन्तु तिच गति में मोग भूमि की अपेक्षा जानना १६ पाहारक दोनों प्रकाश अवस्था बाढ़ाक. अनाहारक चारों गतियों में हरेक में कोनं. १६ मे को नं.१ 'चाग गतियों में हक में ] को ना में की नं. १६ में १ माहास जानना १६ देशो से १६ देखः । १-१ के भं' का नं०१६] देख । १६ देखो को नः १ न १६ दबी मे १६ देखा गत नियंन । गान में केवल मोम भूमि । को अपेक्षा जानना २. स्थान १ भंग १ उपदोग । 'भंग उपयोग जानालयांग : चारों गलिया मन में कोन १ मे का न.१में चारी गतिया में हरेक में कान में | का नं० १६ म दर्शनोपनाम: का मंच दलो १६दखाका भंग जानना का दिन १९५खा ये जान्ना को नं.१ मे १६ देवी न०१६म १६ देखी । परनु निरंच गति में केवल भोग भूमि की प्रपेक्षा जानना सूचना-मवधि दांन में मग्या हो सकता है । परन्तु मनृश्य धोर वन्य- दामी दश में ही उम्म लगा । (दवा गो कम्ग ३०८- ३२५)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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