SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ३ मिश्र मुण स्थान ० स्थान नाम मामान पालाप - - - - - । प्रपात - पर्याप्त - नाना जीवों की अपेक्षा । एक जोव अपेक्षा नाना समय में - - - - गव जीव अपेक्षा | समय से -- - - - - - - ----- - - - ।। - १ गुण स्थान | मिश्च नग स्थान चा गनिचों में हरेक में जानना • जीव समान . १ । मजो पंचन्द्रिय पर्याप्त चारों गतियो में हरेक में जानना ३ पर्याप्ति को नं. १ देखो चारों गतियों में हरेक में ६ का भंग-को.नं. १६ से १६ के समान ४पास १० १० को न०१ देखो चारों गतियों में, हरेक में ११ का मंग-को.नं.१६ से १६ देखो ५ संज्ञा को नं०१ देलो पारों गतियों में हरेक में ४ का भंग-को.नं.१६ से १६ के समान ६ गति को नं. १ देखो चारों गति जानना पूचना-उस मिश्र गुगा मान में मरण नहीं होता। (देखो गोर क. गा, ५४६) नया यह विग्रह पति बौदारिक मिध काययोग, या 4कृषक मिश्र काय योग की या कारण काय वोग इनको अवस्थाय नहीं होती इसलिये यहां अपर्याप्त अवस्था नहीं है। दिखा मो. क. गा. ३१ से ३१६) । १ गमि चारों गति में बाई १ नति गनि । ममें कोई पनि । ७ इन्द्रिय जाति १पंचेन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति चारों गतियों में हरेक में जानना ८काय त्रसकाय त्रसकाय चारों गनियों में हरेक में जानना है योग मनोयोग ४ वचनयोग४ । पौ. कापयोग या वं. काययोग घटाकर (8) और काययोग १ काय । करों गतियों में हरेक में योग। ये १० योग जानना' का भंग-की.नं.१६ से १६ समान जानना ९ का भंग जानना | को० नं.१६ से १० देखो बांग भंग में में काई १ योग जानना को नं.१६ से १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy