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________________ . चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर २ सामदन गुण स्थान १९ अाहारक २ | अनाहारक ही १ का भंग काई १ अवस्या मनाहारक | विग्रह गति में । पाहारक अनाहारक १ का भंग निवृति पर्याप्त अवस्था में । याहारक २. उपयोग 3-के भंग कोई १ उपयोग । ४ कुप्रवधि । कोई १ उपयोग कुमत्ती कुभूति । ।४ का भंग कृपवधि जान घटाकर प्रयपि भान ले २रे गुण ५ का भंग अवधि जान जोड़कर प्रचक्षु दो दर्शन ये ४ गुग्ग २१ घ्मान | । कोई १ स्थान कोष्टक १ प्रमाग - -३४-३५-१६-३७, ४४-४६-४५ के बंग १ समय के भी का ४०- । ४०-४-2 के भंग १० मे १७ तक कोष्टक नं.१ में छदारिक ४४ का भंग नरक गति में बणेनकोष्टक १६ प्रवृत १२ । ० का भंग सासादनी मरकर का कोई १ भंग ५ मिध्यान घटाकर । मित्र अबृत १२ कषाय २३ । मे १२ तक देखो कयाय २५ । नरक में नहीं जाता । । वकृयक मिव । योगह | योग : । ३३ का भंग एकेन्द्रीय निरयंच । मारमारण ये । १६ का भंग मंत्री पंचेन्ना । प्रवृत्त ७ काय २३ । तीन काय योग नियंच और मनुप के । बोग पटाकर अबुन १२ कषाय २५ । 3४ का मंग दो हनीय के प्रबृन वोम कोष्टक १७ -गिनकर १८ प्रमाण 12 काग ने इन्द्रीय के घवृतः १५ का भंग देव गती में । को गिनकर वृन १२ कगाय २१ का भंग हॊइन्दौर के योग है कोटक अवन १० मिनकर १६ प्रमागा 5 का भंग असंजी पंचेन्द्रीय के मवृत ११ गिदकर ४. का भंग मंडी पंचाद्री नियंच मनुष कर्म - - - -- भूमियों के
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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