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________________ ( २७६ ) कोष्टक नं० ४० चौतीस स्थान दर्शन औदारिक काय योग में (२) मनुष्य गति में १०-४-१० के भंग को० नं०१८ देखा १ भंग को० न०१८ देखो ५ मंज्ञा ४ को नं. १ देखो __ को नं. १८ देखो १ नंग को० नं० १७ देखो ४-४ के भंग को नं. १७ देखो 1) मनुष्य गति में ४-१-२-१-१-०-४के भंग को में १८ के समान जानना मा भंग को० नं०१८ देहो। को० न०१८ देतो । ६ गति २ १ गति तिर्यच गति, मनुष्य गति ७ इन्द्रिय जाति ५ को० नं. १ देखो १तियंच गति को नं०१७ देखो १ मनुष्य गनि को० नं०१८ देवी 13) तियं च गति में ५-१-१ जाति को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति मे १ जाति को नं०१८ देखो १ जाति १पनि का न.१७ देखो १जाति को नं०१८ देखो काय को न०१७ देखो १ काय को न १८ देखो १जाति १ जानि को. नं० १७ देखो जानि को नं १८ देखो काय को.नं. १७ देरहो काय को नं०१८ देशे (१) तिर्थप गति में ६-१-१ के भंग की. नं०१७ देखो (२) मनुप्य जाति में १ त्रसकार को न. १८ देखो को० न०१ - देखो हयोग प्रौदारिक काय योग । तिर्वच गान में । यौ० कावयोग को नं०१७ देखो (3) मनुष्य गति में : मौ० काययोग को० नं. १८ देखो १० बेद १ मंग को न देसी को० नं०१७देनों को नं. १७ देखो (१) तिच गति में ३-१-३-२ के भंग को० नं०१७ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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