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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५७ अकषायों में ऋ० स्थान सामान्य माला पर्याप्त एक जोव के नाना एक जीव के एक। समय में समय में अपर्याप्त ।१जीब के नाना । एक और के नाना जीवों की अपेक्षा समय में एक समय में नाना जीव की अपेक्षा १ गुण स्थान ११-१२-१३-१५ गुण . ११ मे १४ वे ४ गुगा. को दं. १८ देखो सारे मुग्ण स्थान १ गुण ४में मे कोई । १३२ गुण स्थान 'मुग्प० । १ पर्याप्त अवस्था २ जीव ममास २. संजी पं०-पर्या-अपर्याप्त ३ पर्याति ___ को० नं. १ रखो। | १ अपर्याप्त अवस्था १ मंग 1 भंग ३का भंग ३ का भंग ४ प्राण को० नं० १ देखो १ भंग १ मंग। को० न०१८ रखो कोन०१८ देखो ५ सजा ६ गनि ७ इन्द्रिय जाति ६ का भंग ६का भंग का मंग को० नं० १८ देखो को नं०१८ देखो १ भंग १ अंग १०-४-१ के भंगको .नं-१८ देखो कोनं.१८ देखो का भंग कोनं०१८ देखो | को० नं०१८ देखो प्रतीत संजा १ मनुष्य गति जानना कोन०१८ देखो १पंचेन्द्रिय जाति को०म०१८ देखो १जयकाय को००१८ देखो सारे भंग । १ योग प्रो० मिघकागयोग १, कामरिण काययोग कार्माण काययोग ये २ पटाकर (९) ये २ पोग जानना (१) मनुष्य गति में . (३) मनुष्य गति में + काय योग सार भन प्रा०मिश्रकायो मिश्रकाययोग ६ योग मनोयोग , वचनयोग ४, पौ. काययोग, श्री० मिथकाययोग १, कार्मारण काययोग १ ये ११ योग जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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