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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.१८ मनुष्य गति ४के हक भग में पाक में म अप्रत्याभ्यान कषाय को नगक वेद घटाकर १०-४५- पदस्था १ घटाकर ८ से १४ ४१ क भंग जाना तक के भंग जानना मूचना -यहा हिंसा न होने में ऊपर के 6 में १६ । नक के अंगों में से १६ का भंग नहीं होता इसलिये १६ का मंग धड़ दिया है। ६ ७वे वे गुग में ५-६-3 के भंग ५-६-3 के अंगों भंगों का विवरण में से कोई काई ५ का भंग किसी एक संज्वलन भंग जानना । कषाय की अवस्था, हाम्य- । रति या अरति शांक इन दोनों । | जाटों में से किसी एक जोड़े की २ नांकषाय, तीनों वेदों में से कोई १ वेद, ऊपर के हरेक शेग स्थान में में कोई १ यांग, २५ का भंग जानना का भंग ऊपर के ५ के भंग में भय । या जगप्या उन दोनों में से कोई । १ जोड़कर ६ का भंग जानना ३ का भंग कार के ५ के भंग में भय और वगामा के दोनों जोहकर ' का भंग जानना। सूचना .-६वे गुगा स्थान के जहां , प्राडार योग गिनेंगे यहाँ प्रो.
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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