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चौतास स्थान दर्शन
कोष्टक नं०१८
मनुष्य गति
के भाग में में बदः , कानमान-माया काय ३ ग घटाकर 20 भग टानना
गुग में का भा कार के १०के भंग में में लोभ कपाप घटाकर वा भंग जानना व गुण
मा में १म१७ तक ५ का भर उन्यमम का "से १७ तक के के मंगों में मे । अपना सत्यमनोनोग १ अनूभय | भंग ऊपर के ले कोई १ मग मनायोग १, मत्यवचनयोग १, मिथ्यात्व गुगण स्थान जानना अनुभय वचनमोग १, औदारिक के ११ मे १८ तक के काययोग १ये ५ का भग हल भंग में में जानना
मिथ्या दर्शन १. घटाकर १० मे१७
नक के भग जाननार मे १६ के ३ का भंग भावमन की रे ये गा में भंगों में से कोई अपेक्षा ऊपर के ५ के भंग में मे ग१६नक के भंग १ भंग जानना मन्यमनायोन , अनुभ्यमनी- | 74. के. मृग. यांग १ . घाबर : का | के १० से १७ नक भंग जानना
मत भंग में से १वे मृग में
अनन्तानबंधी कगाय (0) का भंग यहां कोरवस्था घटायोग नहीं है
करनक
के भग जानना (२१ भोग भूमि में
ने गुगा० १४ नमें १ म । गुग: म - में नव भंग में में से कोई
५०-४०-४१ भंग पर केमे १५ ? मंग जानना ऊपर के कर्मभूमि के 2.?-४- नक के हरेक भग ,
नपुंसक वेद छोड़कर
स्त्री-यूरुपये २ वेदों | म में कोई । वेद!
जानना | रे गुरण में १० मे १७ तक १० से १७ तक केके भंगों में से
भंग पर्याप्तबन्। कोई १ भंग | जानना परन्तु कोई जानना
यहां हरफ मंग : में स्त्री-पुरुष ये २ वनों में से कोई
जानना थे गुगा ये ये १६ तक के
से१नक के अंगों में से कोई भंग पर्याप्तवन जानना १ भंग जानना परन्नु यहाँ हरेक मंग परन्तु यहां हरेक | में एक प्रस्य वेद मम में एक पुरुष
जानना वेद जानना