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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७५ कृष्ण या नील लेश्या में (१) मनुष्प गति में । सारे भंग दर्शन को नं. १८ टना २-३ में भग को.न.१८ दखा को०१८ (४) बनि म । १ मम १ दर्शन को० नं. १८ देखो देखो '• का भंग-को० न० हो० नं. १ देखी । को० नं.१६ | देखो १५ लझ्या १ । करमा या नीन जिरावा कृषण वा मील नश्य। मे विकार किया जाय में जिसका विचार किया वह १ लेन्या ज्ञाय कह १ नभ्या १६ मत्यत्व १ भंग १चवस्था भव्य अभकर कर्म भूमि की अपेक्षा को०१६-२- कोनं०१६. कमान को अपना को नं०१६गे कानं नीनी गतियों में हरेक में ।१८ देखो १३१% देयो । चारों नियों में हरे में : १६ देबो म देखो २-१ के मंग-को. नं. : २-१ भग-को नं० ।१६ १६ देखो [७ राम्ध्वस्त्र पार भंग १गभ्यस्व ४ च भंग १सम्यक्त्व को नं० १६ देखा । (१) नरक गनि में को० न०१६ दखो का नं०१६ मिथ उपनाम घटा- । १-१-१३-२ ने मंग-को. देखो | कर (४) जानना (१) नरक गति में का न० १६ देखो । को नं०१६ (२) नियंत्र गति में ६मंग १ सम्यक्त्व १-२ के मंग-को २० देखो १-१.१.२ के भंग- कोको में०१७ देनो को० नं०१७ | १६ देखो नं. १७ देखो देखो (२) निर्थच गति में १ भंग । १ सम्यवत्व । (२) मनुष्य मति म सारे भंग १ सम्यक्त्व । १-१ के भग-कोन की नं०१७ देखो को० नं०१७ १-१.१.३ के भंग-को को नं०१८ देखो' को० न०१८ १७ देखो न १८ देखो देखा (३) मनुष्य गति में । मार भंग १ सम्यस्त्व १-१-० के मंगकाम को नं०१८ दत्रो को न०१८ १८ देखो देखो (6) देवगनिःमें सारे भंग १ सम्पचव भवत्रिक देवों की अपेक्षाको० म०१६ देखो | को. न. १९ १-१ के मंग-को० नं. देखो १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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