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________________ ५४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ 전화 * चौतीस स्थान दर्शन २ - (4) Priw niew - १ गुग० के २४ के मंग घटाकर सारे मंगबो० नं०] 5? के समान जानना तुहा अ दर्शन के जगह जानना I 1 [ ५.१३ ) कोष्टक नम्बर ७२ 21 ४ को० नं० २४ २५ २६ के समान जाननः । मारे भंग नं ७१ ५ ६ भंग ०७१ देखो अवाना कां० नं० १६ १४ । - बंध, प्रकृतियां - उदय प्रकृतियां सत्य प्रकृतियां - सहया प्रख्यात जानना । क्षेत्र लोक कामातवां भाग जानना । स्पर्शन – नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जाननना एक जीव की अपेक्षा लोक का प्रयास ६ । काल – नाना जीवों की पेक्षा नकाल जानना | एक जीव की अपेक्षा अन्त मे दो हजार (२००७ नागर तक जानता । अन्तर– नाना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा कर मके । 1 चक्षु दर्शन में २ (२) नियंत्र गति में गुगवान के कोनं के भग १ घटाकर भंग को नं. ३१ के समान जाननः परन्तु यहा के जगह चलन जानना जाति (योनि) - २= नाम योनि जानना । (चतुविन्द्रिय २ लाख, पंचेन्द्रिय २६ लाव. मे २८ नाम जानना । कुल ११०० लाख कोटिकुन जानना । चरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय १०८ ॥ ये ११७६ लाख कोटिकुल जानना । मा मंग ८ १ भंग को० नं० २१ देस्रो भोगल परावर्तन काल को सुदर्शन प्राप्त
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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